आपदा में वेतन बृद्धि न्यायसंगत नहीं

हिमाचल प्रदेश में एग्जास्टर एक्ट बाबजूद माननीयों के वेतनमान में कई गुणा बृद्धि न्याय संगत नहीं है?। कहने को सुख की सरकार ने प्रदेश में एग्जास्टर एक्ट लागू कर रखा है। राज्य में आपदाओं चलते जनता बेघर हो चुकी,मकान,पशुशालाएं,दुकानें,रेस्टोरेंट,होटल,सड़कें,पुल,ढंगें,जमीन, खेत खलिहान तक ध्वस्त हो चुके हैँ। 471 लोग मौत का ग्रास बने,34 अभी भी लापता हैँ। सरकारी विभाग आपदाओं से हुए नुकसान का आंकड़ा नित नए दिन सार्वजानिक कर रहे हैँ। सुख की सरकार आपदा का कुल नुकसान बढ़ाती जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 सौ करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता पहुँचाने की घोषणा किए हैँ। सुख की सरकार के लिए यह राहत राशि नागुवर लग रही है। सतापक्ष,बिपक्ष आपस में इस बिषय को लेकर आए दिन बयानबाजी किए जाने में मशगूल हैँ। आपदा पीड़ितों पास मुलभुत सुविधाएं बड़ी मुश्किल से मयस्सर हो पा रही हैँ। आपदा की घड़ी में बोर्ड,निगमों के अध्यक्षों,उपाध्यक्षों उपरांत माननीयों की सैलरी में वेतहाशा वेतन बृद्धि उनके स्वार्थी पन की हामी भरती है।आपदाओं में अवसर तलाश करना कतई सही नहीं कहा जा सकता है। माननीय अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का उपयोग गलत कर रहे ऐसा कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। बात जब माननीयों की सुख सुविधाओं की आई तो सतापक्ष,बिपक्ष एक जुटता का प्रमाण देते हैँ। हिमाचल प्रदेश की जनता के लिए सरकार सदैव कर्जदारी का रोना ज्यादा रोती है। पीड़ित जनता की बजाए अपने वेतनमान की चिंता करने बाले जनसेवक नहीं हो सकते हैँ। सरकारी कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं मिल रहा है। पेंशनर पैंशन चोर,गद्दी छोड़ का नारा बुलंद करके सरकार खिलाफ सड़कों पर उतरे हैँ। हिमाचल प्रदेश की जनता पर एक लाख करोड़ रुपये का कर्जा पार करने बाला है।पहाड़ का प्रत्येक व्यक्ति कर्जदारी के बोझ से दब रहा है। राज्य सरकारें कर्जा लेकर अपना कार्यकाल पुरा करके चलती बन रही हैँ। वर्तनमान सरकार कर्जधारी के लिए पूर्व की सरकार को जिम्मेदार ठहराकर जनता को बेबकुफ़ समझती हैँ।हिमाचल प्रदेश को बिशेष राज्य का दर्जा मिले होने कारण केंद्र सरकारें सदैव उसकी आर्थिक सहायता करती हैँ। आज नौबत हिमाचल प्रदेश का अस्तित्व खत्म होने की आ गई है। पहाड़ का बजूद ही नहीं रहेगा तो फिर केंद्र सरकारें भी बिशेष राज्य का दर्जा छिन सकती हैँ। हिमाचल प्रदेश की राज्य सरकारें आखिर कब आत्म निर्भर बनकर जनता को कर्ज मुक्त करेंगी कोई नहीं जानता है। प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण हिमाचल प्रदेश को मानों ग्रहण लगता जा रहा है। गत तीन बर्षों में निरंतर आपदाएं आने कारण हिमाचल प्रदेश 20 बर्ष पीछे चला गया है।राज्य सरकारें हिमाचल प्रदेश को पर्यटन की दृष्टि से बिकसित किए जाने में सफल नहीं हैँ। नतीजन राज्य सरकारों को मजबूरन कर्जा लेकर काम चलाना पड़ रहा है।कर्जधारी का खेल आखिर कब तक चलेगा जब फजूल खर्ची पर माननीयों का कोई अंकुश नहीं है। कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश में 10 ग्रांटियों सहारे सुख की सरकार बनाने में सफलता हासिल पाई। पिछले तीन बर्षों में सुख की सरकार इन गारंटियों को पुरा करने में सफल नहीं हो पाई है। सुख सरकार को प्रत्येक मंच पर बिपक्ष द्वारा ग्रांटियों को लेकर उस पर लगाए जा रहे आरोपों का स्पष्टीकरण देना पड़ता है। जिला परिषद,बिद्युत बोर्ड कर्मचारी पुरानी पैंशन बहाली को लेकर संघर्षरत हैँ। महिलाओं को पुंद्रह सौ रुपये नहीं मिल पाए। जनता तीन सौ बिजली यूनिट मुफ्त दिए जाने का इंतजार कर रही है। एक बर्ष में लाख सरकारी नौकरियां दिए जाने की बात भी अभी अधूरी है। सुख की सरकार बेरोजगारी की दर को कम करने उद्देश्य से वन,बिजली,रोगी,पशु,आपदा मित्रों की भर्ती कर रही है। मित्रों को मिलने बाला वेतनमान नाकाफ़ी है। कृषक मित्रों से किसी सरकार ने मित्रता नहीं निभाई अभी तक। ऐसे में सुख की सरकार द्वारा सरकारी विभागों में मित्रों की भर्तियां किए जाना बेरोजगार युवाओं का शोषण ही कहलाएगा। आउटसोर्स,मल्टी टास्क बर्करों को मिलने बाला वेतन किसी से छुपा नहीं है। पांच हजार रुपये वेतनमान पर आज के समय अपना जीवन यापन करना बहुत मुश्किल है। सुख की सरकार पास ऐसे बेरोजगारों को सही वेतनमान दिए जाने के लिए पैसा नहीं है। ऐसे कर्मियों की वेतन बृद्धि किए जाने समय कई औपचारिकताएँ खड़ी हो जाती है। केबिनेट में बिल पास करके कभी भी अपने वेतनमान कई गुणा अधिक बढ़ा सकते हैँ। माननीयों उपर कोई कायदा, नियम लागू नहीं होता है। सुख की सरकार ने विधायकों का वेतन 55,000 से बढ़ाकर 85,000,दैनिक भत्ता 1800 से बढ़ाकर 2500,निर्वाचन क्षेत्र भत्ता 95,000 से 1,20,000 रुपये,कार्यालय भत्ता 30,000 से 90,000,मुख्यमंत्री का वेतन 95,000 से बढ़ाकर 1,15,000,केबिनेट मंत्री 80,000 से 95,000,और मुख्यमंत्री का सत्कार भत्ता 95 हजार से बढ़ाकर डेड लाख रुपये किया गया है। आपदा चलते माननीयों के वेतनमान में इस कदर बेतहाशा बृद्धि होना चिंताजनक है। सुख की सरकार के मुखिया का कहना की हम सता सुख के लिए नहीं व्यवस्था परिवर्तन करने आए हैँ। अगर आपदा की घड़ी में माननीयों को अपना वेतनमान कई गुणा बढ़ाना व्यवस्था परिवर्तन का हिस्सा लगता तो प्रदेश की जनता को इसका जरूर माकूल जबाब देना होगा।राज्य सरकार की गलत नीतियों कारण प्रदेश का हर बर्ग आज आहत है। जंगली मुर्गे विवाद पर पत्रकारों,खाना मांगने पर छात्राओं पर एफआईआर दर्ज करना,समोसा कांड की जांच करबाए जाने आदि अनगिनत मामलों से राज्य सरकार की किरकिरी हुई है। सुख की सरकार ने सतासीन होते ही हजारों सरकारी संस्थानों को डीनोटीफाई किए जाने की प्रकिया शुरु की जो आज भी चल रही है। अधीनस्थ चयन बोर्ड हमीरपुर पर ताला जड़ने से समय पर रोजगार के अवसर युवाओं को नहीं मिले हैँ। उचित मूल्य की दुकानों में जनता को कभी पर्याप्त राशन नहीं मिला, जिसका असर बिक्रेताओं की कमीशन पर पड़ा है।सरकारी मशीनरी द्वारा गलत अधिसूचनाएं जारी किए जाने की बजह से प्रदेश की जनता को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है।सरकारी विभागों में ईकेवाइसी करवाए जाने,डिपुओं में आँखें स्केन किए जाने का नियम लागू किए जाने से जनता तरसत है।सुख की सरकार पर हमेशा खतरे के बादल मंडराते रहे हैँ। संगठन,सरकार में आपसी तालमेल न होने कारण कभी तक प्रदेश में अध्यक्ष पद की ताजपोशी नहीं हुई है।कांग्रेस विधायक भाजपा का दामन पकडकर सरकार की परेशनियां बड़ा चुके हैँ।सुख की सरकार का अभी तक का कार्यकाल भाजपा के आरोपों का जबाब देने और ग्रांटियों को पुरा करने में फिलहाल जा रहा है। प्रदेश में बिकास कार्य ठप्प पड़े,सरकारी मशीनरी में तालमेल की कमी का खामियाजा प्रदेश की जनता भुगत रही है। राज्य सरकार ने अपनी कार्यप्रणाली में समय रहते अगर सुधार नहीं किया तो कांग्रेस अगले कई बर्षों तक सता से दूर रहेगी।