शिमला

रोहड़ू में 12 वर्षीय दलित बच्चे की मौत के मामले में महिला गिरफ्तार

रोहड़ू में 12 वर्षीय दलित बच्चे की आत्महत्या मामले में गिरफ्तार महिला 18 अक्टूबर तक पुलिस रिमांड पर

शिमला जिला के रोहड़ू उपमंडल में 12 वर्षीय दलित बच्चे की आत्महत्या के मामले में बड़ा अपडेट सामने आया है। जातिगत प्रताड़ना और मारपीट के आरोप में गिरफ्तार महिला को शुक्रवार को रोहड़ू कोर्ट में पेश किया गया, जहां से अदालत ने उसे 18 अक्टूबर तक पुलिस रिमांड पर भेजने का आदेश दिया।पुलिस ने महिला को बुधवार शाम शिमला से गिरफ्तार किया था। इससे पहले हिमाचल हाईकोर्ट ने उसकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी। जस्टिस राकेश कैंथला की बेंच ने कहा कि रिकॉर्ड के अनुसार महिला ने मृतक बच्चे को पीटा और उसे गौशाला में बंद कर दिया, क्योंकि उसने अभियुक्त के घर को छू लिया था। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा — “यह अपराध मृतक की जाति के कारण किया गया प्रतीत होता है। यदि मृतक अनुसूचित जाति का सदस्य न होता, तो शायद यह अपराध नहीं होता।” अदालत ने इसे गंभीर जातिगत भेदभाव का मामला मानते हुए महिला की जमानत याचिका ठुकरा दी थी। पूरा मामला 16 सितंबर का है, जब रोहड़ू के जांगला क्षेत्र के लिबड़ा गांव में एक 12 वर्षीय बच्चे के साथ कथित रूप से जातिगत प्रताड़ना और पिटाई की गई थी। उसे पहले सीएचसी रोहड़ू और फिर आईजीएमसी शिमला रेफर किया गया, लेकिन 17 सितंबर को बच्चे ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पता चला कि बच्चे ने जहरीला पदार्थ निगल लिया था। परिवार ने 20 सितंबर को पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, लेकिन शुरुआती जांच में एट्रोसिटी एक्ट नहीं लगाया गया। बाद में बच्चे की मां ने मजिस्ट्रेट के सामने बयान दिए, जिनमें उसने आरोपी महिला पर जातिगत अपमान और मारपीट के आरोप लगाए। इसके बाद 28 सितंबर को पुलिस ने महिला पर एट्रोसिटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया। अब इस पूरे मामले में हिमाचल प्रदेश अनुसूचित जाति आयोग ने भी कड़ा संज्ञान लिया है। आयोग के अध्यक्ष कुलदीप कुमार ने इस मामले की जांच कर रहे एएसआई मंजीत को सस्पेंड करने के आदेश दिए हैं। साथ ही डीएसपी रोहड़ू की कार्यप्रणाली पर स्पष्टीकरण मांगा है। आयोग ने पुलिस जांच की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा कि पीड़ित परिवार को सुरक्षा खतरा है, इसलिए उन्हें पुलिस सुरक्षा मुहैया करवाई जाए। यह मामला हिमाचल में जातिगत भेदभाव और संवेदनशीलता पर गंभीर सवाल उठाता है। समाज के कमजोर तबके के प्रति भेदभाव और हिंसा की घटनाओं पर प्रशासन की प्रतिक्रिया और सख्त कार्रवाई की आवश्यकता को यह मामला फिर से सामने लाता है।

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