सहारा योजना लाभार्थियों को बजट का इंतजार

हिमाचल प्रदेश में आपदाएं आने कारण लोकतंत्र की प्रथम इकाई पंचायतों के चुनाव स्थगित किए जा सकते हैँ। माननीयों की बेतहाशा वेतन बृद्धि इस समय बढ़ना प्रदेश की जनता को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर रही है। वेतनबृद्धि सतापक्ष,बिपक्ष एकजुटता दिखा रही जिससे अंदाजा लगाया जा सकता की सिर्फ अपनी सुख सुविधाओं में कोई कमी नहीं रखना चाहते हैँ। गंभीर बीमारियों से पीड़ित सहारा योजना लाभार्थियों को राहत राशि दिए जाने के लिए सुख सरकार पास बजट की दरकार है। सुखाश्रय योजना दम पर अपनी वाहवही करवाने बाली सरकार सहारा योजना के लाभार्थियों को पिछले तीन महीनों से पेंशन दिए जाने में सफल नहीं हुई है। सहारा योजना पूर्व भाजपा सरकार ने शुरु की,क्या इसका खामियाजा पेंशनरों को भुगतना पड़ रहा है। सुखाश्रय योजना का डिंडोरा सुख की सरकार प्रत्येक मंच पर पीटती है। सहारा योजना के लभार्थियों की पेंशन समय पर जारी न होने से राज्य सरकार की साख धूमिल हो रही है। हालांकि राज्य सरकार ने अपंग लोगों की पेंशन 15 सौ की बजाए 4 हजार रुपये करने का एलान कर रखा है। सुख की सरकार पास अपंग लोगों को राहत राशि दिए जाने के लिए फंड का अभाव स्वास्थ्य विभाग के कर्मी बता रहे हैँ। पंचायत में प्रत्येक व्यक्ति का जन्म,मृत्यु प्रमाण का रिकार्ड अंकित रहता है। ऐसे में अपंग लोगों को स्वास्थ्य विभाग से हर छह महीनों उपरांत यह सर्टिफिकेट लेकर सरकार को भेजना की हम अभी जिंदा है कतई न्यायसंगत नहीं है। अपंग लोग अपने जिंदा होने का प्रमाण प्रत्येक 6 महीने उपरांत सरकार को भेज रहे हैँ। मगर ऐसा प्रतीत होता की सुख की सरकार की मशीनरी में मानवीय सवेदनाएं मर चुकी हैँ। पूर्व भाजपा सरकार ने गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों की आर्थिक मदद किए जाने उद्देश्य से सहारा योजना चलाई थी। राज्य सरकार द्वारा पीड़ितों को दी जाने बाली राहत राशि से उन्हें बहुत सहारा मिलता था। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सुख की सरकार ने सहारा योजना में औपचारिकताएं बहुत जटिल बना दी हैँ। गंभीर बीमारियों से पीड़ित मरीजों,सौ प्रतिशत अपंग लोगों के परिवारजनों तमाम औपचारिकताएँ पुरी किए जाने बाबजूद भी अब पेंशन नहीं मिल रही है।सुख सरकार के मुखिया प्रत्येक मंच पर कहते की वह सता सुख भोगने नहीं आए बल्कि व्यवस्था परिवर्तन के आयाम स्थापित करने आए हैँ।खेद का बिषय की राज्य सरकार कर्जदारी बाबजूद निगमों,बोर्ड में अध्यक्षों,उपाध्यक्षों के वेतनमान में कई गुणा बृद्धि कर रही है।गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए सरकार पास बजट न होना निंदनीय है।राज्य सरकार जनता प्रति अपनी जिम्मेदारियां सही निभाने में निरंतर फिस्ड्डी सावित हो रही है। हिमाचल प्रदेश में बेरोजगारी का आंकड़ा कम करने के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयास मजाक का पात्र बन रहे हैँ। चंद सिक्कों में वन,रोगी,पशु,और आपदा मित्रों की भर्ती किए जाना युवाओं का जमकर शोषण किए जाना कहा जा रहा है। हिमकेयर कार्ड निजी अस्पतालों की बजाए कुछेक सरकारी अस्पतालों में चल रहा है। गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोगों को न सहारा योजना का लाभ सही मिल पा रहा और न हिम केयर योजना का।पेंशनरों की कई बार ईकेवाइसी किए जाने से तातपर्य की जिला परिषद,पंचायत प्रतिनिधि,आशा और आँगनाबाडी बर्कर जनता प्रति अपनी जिम्मेदारियां सही नहीं निभा रहे हैँ। जनता को वेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करवाना राज्य सरकारों की अहम प्राथमिकता होती है। हिमाचल प्रदेश में बिल्कुल इसके बिपरीत हो रहा है।जिला चम्बा में एक चिकित्सक द्वारा नन्ही बच्ची के लिए जिस तरह अपशव्दों का प्रयोग किया वह शर्मनाक है। प्रदेश की राजधानी शिमला के दो नामी अस्पतालों के चिकित्स्कों पर मरीजों के इलाज में कोताही बरतने के संगीन आरोप लगे हैँ। नतीजन दोनों मरीजों की दुःखद मौत हो चुकी है। प्रदेश के सबसे बड़े अस्पतालों में जनता को वेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की दरकार है। जिला,तहसील स्तर के अस्पतालों में कैसी व्यवस्था होगी आज बड़ा सवाल है?।अस्पताल प्रबंधक मृतकों के परिजनों द्वारा उन पर इलाज में कोटाही बरतने के लगाए गए तमाम आरोपों को ख़ारिज करके अपने आपको बेकसूर बता रहे थे। सरकार अब कमेटी से इसकी जाँच करवाएगी जिसमें समय लगेगा और तब तक जनता भी इस प्रकरण को भूल जाएगी। इस तरह का कुप्रबंधन हमारी राज्य सरकारों की कार्यप्रणाली में शामिल है।आज प्रदेश के अस्पतालों से ऐसी सुर्खियाँ सामने आ रही जिन्हें पढ़,सुनकर हर कोई आहत हो सकता है। कुछेक अस्पतालों में महीनों से लिफ्ट,एक्सरे मशीनें खराब पड़ी,स्ट्रेचर, दवाइयों, स्टॉफ,एम्बुलेस का अभाव है। बदलते खान,पान चलते बीमारियां भी बड़ी यह बात सत्य है। किसी भी राज्य सरकार के लिए अब वेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं जनता को मुहैया करवाना बहुत बड़ी चनौती है। अस्पतालों में अनावश्यक बीडीओ ग्राफ़ी किए जाने से स्टॉफ भड़क जाता यह बात हमें स्मरण रखनी चाहिए। अस्पतालों में ओपीडी कई गुणा अधिक बढ़ चुकी और पर्याप्त स्टॉफ का अभाव होने कारण चिकित्स्कों पर काम का बोझ अधिक है। चिकित्सक,तामीरदारों की आपसी बहसबाजी सोशल मीडिया में वायरल होने से प्रदेश की छवि धूमिल करती जिससे परहेज करना जरूरी है। हिमाचल प्रदेश के स्वास्थ्य संस्थानों के कुछेक कर्मचारियों द्वारा आए दिन मरीजों के तमीरदारों साथ बदतमीजी किए जाने के बीडीओ सोशल मीडिया में वायरल हो रहे हैँ।सुख की सरकार गैर जिम्मेदारी से कार्य करने बाले कर्मचारियों खिलाफ कार्यवाही किए जाने बजाए मुकदर्शक बनी हुई है। राज्य सरकार द्वारा अपनी मनमर्जी से माननीयों के वेतनमान बृद्धि लोकतांत्रिक व्यवस्था की बजाए तानाशाही ज्यादा नजर आ रही है।