कांगड़ा

फलदार बगीचे काटना,न्यायसंगत नहीं

वन भूमि में अवैध कब्जे हटाने को लेकर माननीय अदालतों को संज्ञान लेना पड़े तो समझना होगा की हमारी राज्य सरकारें प्रकृति सरंक्षण में नाकाम हैँ।कहने को हिमाचल प्रदेश में 68 प्रतिशत भूमि पर जंगल शेष बचे हैँ।सच बात यह की प्रभावशाली लोगों ने अवैध भवन निर्माण सहित बागीचे स्थापित करके अपना अधीपत्य वन भूमि पर जमा रखा है।राज्य सरकार के विभाग भी सरकारी जमीनों पर निरंतर हो रहे अवैध अतिक्रमण को हटाने में फिलहाल नाकाम हैँ।अतिक्रमण की फाइलें दशकों से कार्यालयों की अलमारियों में धूल फांक रही हैँ।राजनितिक दखलअंदाजी चलते प्रशासनिक अधिकारी जनता प्रति अपनी जिम्मेदारियां सही निभाने में असफल चल रहे हैँ।हिमाचल प्रदेश में शायद ही कोई गांव शेष अतिक्रमण से बचा है।अन्यथा लोगों ने वन भूमि पर मकान,पशुशाला,शेड,होटल,रेस्टोरेंट,अन्य संस्थान खोलकर वन भूमि को संकरा बना दिया है।लोगों ने वन बिभाग साथ लगती जमीनों को खरीदकर अतिक्रमण करना शुरु कर रखा है।नतीजन जमीनों के दाम सातवे आसमान पर पहुंच चुके हैँ।जंगलों में बनती सड़कें अवैध कब्जाधारियों का लालच बढ़ा रही हैँ।न्यायलय,राज्य सरकारें अगर कहें की वन भूमि पर हुए अवैध कब्जे नियमित होंगें तो फिर राजनितिक पहुंच रखने बाले लोग इसका लाभ उठाने की अवश्य ही कोशिश करेंगें।सर्वोच्च न्यायलय ने उच्च न्यायलय हिमाचल प्रदेश को निर्देश देकर वन भूमि पर अवैध कब्जे हटाने की महिम शुरु किए जाने का आदेश दिया है।उच्च न्यायलय ने ऑपरेशन एनबेंशन तहत इस अभियान का श्री गणेश कोटखाई चेथला गाँव से किया है।इस अभियान तहत वन,भू राजस्व और पुलिस विभाग की संयुक्त कार्यवाही में सेव से लदे भारी तादाद में पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलाकर इस कार्यवाही को अंजाम दिया है।सरकारी विभागों की संयुक्त कार्यवाही से रामपुर,जुब्बल,रोहड़ू,चौपाल और ठयोग में वन बिभाग की भूमि को अतिक्रमणकारियों से मुक्त कराया जाएगा।माननीय अदालतों के आदेश उपरांत हिमाचल प्रदेश के सरकारी विभागों द्वारा ऐसी कार्यवाही किए जाने की अधिकतर लोग सोशल मीडिया पर सराहना कर रहे हैँ।कुछेक सेव से लदे हरे पेड़ों को अचानक काटने की कार्यवाही को प्रकृति खिलाफ बता रहे हैँ।बागवान आजकल बेहद खफा और आंदोलन की राह पर भी जाने की तैयारी कर रहे हैँ।फलदार पौधों पर कुल्हाड़ी चलाना वैसे समझधारी नहीं माना जाता है।वन बिभाग भी ऐसा करने की किसी ठेकेदार को अनुमति नहीं देता है।सेव की फ़सल तोड़ने उपरांत इस कार्यवाही को अंजाम दिए जाना सही नहीं था आज यह सवाल उठना शुरु है।बागवान पौधों का अपने बच्चे समान पालन,पोषण करता है।सरकारी अधिकारी उस पर कुल्हाड़ी चलाएं तो उनकी मनोस्थिति दुखदायी होना स्वाभिक है।वन विभाग के अधिकारियों खिलाफ भी कड़ी कार्यवाही होनी जरूरी जिन्होंने अतिक्रमण रोकने की कभी कोशिश नहीं की।जेसीवी मशीनों जरिये हरे पेड़ों को जड़ों से उखाड़कर प्रकृति से सरेआम खिलबाड़ किया जा रहा है। बरसात का मौसम चल रहा और हम कितना पौधरोपण अभी तक कर पाए हैँ। राज्य सरकारें पौधारोपण किए जाने पर करोड़ों रुपये खर्च करती हैँ। मगर आजदिन तक हम जंगलों के मिटते बजूद को नहीं बचा पाए हैँ।पौधारोपण सिर्फ सोशल मीडिया में सेल्फी डाले जाने का साधन बनकर रह गया है। अन्यथा बहुत कम लोगों ने पौधों को सिंचित करके प्रकृति सरंक्षण में अपना योगदान दिया है। हिमाचल प्रदेश में गत तीन बर्षों से बाड़ आ रही जिससे लोगों का जीना दुमर बनता जा रहा है। वनों में अवैध भवन निर्माण करके लोगों ने पानी का वहाब मोड़कर कई दिक्क़तें पैदा कर दी हैँ। देवभूमि में प्रकृति से छेड़छाड़ करना बहुत महंगा पड़ रहा है। राज्य सरकार के सरकारी विभागों की अवैध कब्जाधियों खिलाफ कार्यवाही एक व्यबस्था बदलाव का आगाज है। आज हम उम्मीद कर सकते की सरकारों के कायदे नियम सभी के लिए एक समान रूप से लागू होंगें। अबैध कब्जाधारियों खिलाफ कार्यवाही न करने बाले सरकारी अधिकारी सेवामुक्त किए जाने की पहल शुरु होनी चाहिए। सुख की सरकार को इस बाबत उच्च न्यायलय समक्ष अपना पक्ष रखकर बागबानों को राहत पहुँचानी चाहिए थी। भारी मात्रा में फलदार पौधे काटना भी प्रकृति प्रति प्रेम कतई नहीं कहा जा सकता है। हिमाचल प्रदेश में त्रासदी का दौर चल रहा है। ऐसे में फलदार पौधे काटना भूसखलन को न्यौता देने समान हैँ।पेड़ जमीन को अपनी जड़ों से जकड़कर रखते हैँ। भारी मात्रा में पेड़ कटान अचानक किए जाने का आदेश देना भी सही नहीं है। बागवानों द्वारा सेव तुड़ान करने उपरांत ही अतिक्रमण हटाना सही था।स्कूल,कालेजों की राष्ट्रीय सेवा योजना इकाइयों के स्वयं सेवकों से पौधारोपण करवाकर प्रकृति सरंक्षण को बढ़ावा देना चाहिए।

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