कांगड़ा
राज्य के बच्चे: मुख्यमंत्री सुखाश्रय योजना से संवरते सपने
जब सरकार बनी सहारा, तो बचपन ने फिर से देखा सपना

धर्मशाला धूप में तपते सपनों को अगर छांव मिल जाए, तो जिंदगी मुस्कुरा उठती है। हिमाचल प्रदेश सरकार की मुख्यमंत्री सुखाश्रय योजना भी ठीक वैसी ही एक छांव बनकर उभरी है – जो निराश्रित और असहाय बच्चों को न केवल सहारा देती है, बल्कि उन्हें गरिमामय और आत्मनिर्भर जीवन की ओर भी अग्रसर करती है। यह योजना मुख्यमंत्री श्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की करुणा, संवेदनशीलता और दूरदृष्टि का जीवंत प्रतीक बन चुकी है।
“राज्य के बच्चे” – एक नई सोच, एक नई शुरुआत
इस योजना की सबसे अनूठी विशेषता यह है कि अब निराश्रित बच्चों को “राज्य के बच्चे” के रूप में पहचाना गया है। यह केवल एक शब्द नहीं, बल्कि एक क्रांतिकारी संकल्प है जिसके तहत अब उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास और आत्मनिर्भरता की संपूर्ण जिम्मेदारी राज्य सरकार ने स्वयं उठाई है। वे अब ‘अनाथ‘ नहीं, बल्कि ‘राज्य के संरक्षित नागरिक‘ हैं।
कांगड़ा में उम्मीदों की उड़ान
जिला कांगड़ा इस योजना के क्रियान्वयन में अग्रणी रहा है। जुलाई 2025 तक यहां 827 बच्चों को इसका प्रत्यक्ष लाभ मिला है और ₹5.44 करोड़ से अधिक की सहायता वितरित की गई है।
जिला कार्यक्रम अधिकारी अशोक शर्मा कहते हैं कि
सामाजिक सुरक्षा सहायता
827 बच्चों को ₹4,000 प्रति माह – कुल ₹2.52 करोड़
त्योहार अनुदान
77 संस्थागत बच्चों को – कुल ₹2.17 लाख
विवाह अनुदान
75 लाभार्थियों को ₹2 लाख प्रति व्यक्ति – कुल ₹1.49 करोड़
आवास निर्माण सहायता
121 बच्चों को ₹1 लाख की पहली किस्त – कुल ₹1.21 करोड़
इन आंकड़ों के पीछे वे कहानियाँ हैं, जहाँ हौसलों ने बेड़ियाँ तोड़ी हैं, और सपनों ने फिर से पंख फैलाए हैं।
जब शासन बना अभिभावक
कांगड़ा के उपायुक्त हेमराज बैरवा इस योजना को “सामाजिक परिवर्तन की शुरुआत” मानते हैं। वे कहते हैं कि
“यह योजना केवल आर्थिक सहायता नहीं, बल्कि बच्चों के आत्मविश्वास और सामाजिक जुड़ाव की भावना को भी मजबूत करती है। जब कोई बच्चा जानता है कि राज्य उसके साथ है, तो वह खुद को अकेला नहीं समझता।”
एक नई सुबह: अजैव और प्रगति की कहानियाँ
अजैव सिंह – मुल्थान (बरोट) निवासी
अजैव, जिन्होंने कम उम्र में अपने माता-पिता को खो दिया था, के लिए माता पिता के साए एवं सानिध्य के बिना जीवन के पथ पर आने वाली पहाड़ सी चुनौतियों को पार कर पाना इतना सरल न था। वे धर्मशाला में पढ़ाई के साथ पार्ट-टाइम काम कर जीवन यापन कर रहे थे। रहने और खाने तक की दिक्कत थी। लेकिन मुख्यमंत्री सुखाश्रय योजना ने उन्हें संबल दिया। ₹4,000 मासिक सहायता मिलने से उनकी पढ़ाई नहीं रुकी। अब वे बी.ए. अंतिम वर्ष की परीक्षा दे चुके हैं।
प्रगति – धनोटू, शाहपुर विधानसभा
बचपन में ही माता-पिता को खो चुकी प्रगति को इस योजना के तहत आवास और विवाह के लिए सहायता मिली। वे कहती हैं:
“अगर मुख्यमंत्री जी की सुखाश्रय योजना न होती, तो न जाने हमारा क्या होता। धन्यवाद मुख्यमंत्री महोदय
मुख्यमंत्री सुखाश्रय योजना केवल एक कल्याणकारी पहल नहीं, बल्कि हिमाचल के हर उस बच्चे की उम्मीद है जिसे जीवन में सहारे की जरूरत है। यह एक सशक्त संदेश है – कि राज्य पीछे नहीं हटेगा, बल्कि आगे बढ़कर अपने बच्चों को संबल देगा।
इस योजना की सबसे अनूठी विशेषता यह है कि अब निराश्रित बच्चों को “राज्य के बच्चे” के रूप में पहचाना गया है। यह केवल एक शब्द नहीं, बल्कि एक क्रांतिकारी संकल्प है जिसके तहत अब उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास और आत्मनिर्भरता की संपूर्ण जिम्मेदारी राज्य सरकार ने स्वयं उठाई है। वे अब ‘अनाथ‘ नहीं, बल्कि ‘राज्य के संरक्षित नागरिक‘ हैं।
कांगड़ा में उम्मीदों की उड़ान
जिला कांगड़ा इस योजना के क्रियान्वयन में अग्रणी रहा है। जुलाई 2025 तक यहां 827 बच्चों को इसका प्रत्यक्ष लाभ मिला है और ₹5.44 करोड़ से अधिक की सहायता वितरित की गई है।
जिला कार्यक्रम अधिकारी अशोक शर्मा कहते हैं कि
सामाजिक सुरक्षा सहायता
827 बच्चों को ₹4,000 प्रति माह – कुल ₹2.52 करोड़
त्योहार अनुदान
77 संस्थागत बच्चों को – कुल ₹2.17 लाख
विवाह अनुदान
75 लाभार्थियों को ₹2 लाख प्रति व्यक्ति – कुल ₹1.49 करोड़
आवास निर्माण सहायता
121 बच्चों को ₹1 लाख की पहली किस्त – कुल ₹1.21 करोड़
इन आंकड़ों के पीछे वे कहानियाँ हैं, जहाँ हौसलों ने बेड़ियाँ तोड़ी हैं, और सपनों ने फिर से पंख फैलाए हैं।
जब शासन बना अभिभावक
कांगड़ा के उपायुक्त हेमराज बैरवा इस योजना को “सामाजिक परिवर्तन की शुरुआत” मानते हैं। वे कहते हैं कि
“यह योजना केवल आर्थिक सहायता नहीं, बल्कि बच्चों के आत्मविश्वास और सामाजिक जुड़ाव की भावना को भी मजबूत करती है। जब कोई बच्चा जानता है कि राज्य उसके साथ है, तो वह खुद को अकेला नहीं समझता।”
एक नई सुबह: अजैव और प्रगति की कहानियाँ
अजैव सिंह – मुल्थान (बरोट) निवासी
अजैव, जिन्होंने कम उम्र में अपने माता-पिता को खो दिया था, के लिए माता पिता के साए एवं सानिध्य के बिना जीवन के पथ पर आने वाली पहाड़ सी चुनौतियों को पार कर पाना इतना सरल न था। वे धर्मशाला में पढ़ाई के साथ पार्ट-टाइम काम कर जीवन यापन कर रहे थे। रहने और खाने तक की दिक्कत थी। लेकिन मुख्यमंत्री सुखाश्रय योजना ने उन्हें संबल दिया। ₹4,000 मासिक सहायता मिलने से उनकी पढ़ाई नहीं रुकी। अब वे बी.ए. अंतिम वर्ष की परीक्षा दे चुके हैं।
प्रगति – धनोटू, शाहपुर विधानसभा
बचपन में ही माता-पिता को खो चुकी प्रगति को इस योजना के तहत आवास और विवाह के लिए सहायता मिली। वे कहती हैं:
“अगर मुख्यमंत्री जी की सुखाश्रय योजना न होती, तो न जाने हमारा क्या होता। धन्यवाद मुख्यमंत्री महोदय
मुख्यमंत्री सुखाश्रय योजना केवल एक कल्याणकारी पहल नहीं, बल्कि हिमाचल के हर उस बच्चे की उम्मीद है जिसे जीवन में सहारे की जरूरत है। यह एक सशक्त संदेश है – कि राज्य पीछे नहीं हटेगा, बल्कि आगे बढ़कर अपने बच्चों को संबल देगा।