कांगड़ा

काश ! आज राजा वीरभद्र सिंह होते

कुछ तो खूबियां रहीं होगी यूं ही कोई वीरभद्र सिंह नहीं हो जाता

ढलती उम्र ,कांपते हाथ, लड़खड़ाती जुबान के बावजूद भी राजा साहब सुनते , समझते और करते थे । छोटे से छोटे कार्यकर्ता की इज्जत करते थे। समाज की समस्याएं और मांगे उनके लिए सर्वोपरि थी। समय 3 मार्च 2013 ,ज्वाली की जनसभा ,जब भाषण समाप्ति पर नीरज भारती ने, अपनी कुर्सी पर बैठने जा रहे राजा साहब से अनुरोध किया, तो झटके में राजा साहब ने नगरोटा सूरियां की दशकों पुरानी सरकारी कॉलेज की मांग पूरी करी थी। जिसे बेवजह कई दशकों से लटकाया गया था। एक कॉलेज इंचार्ज के अनुरोध पर वनतुंगली की तब की बियाबान वन भूमि में फरवरी 2015 में कॉलेज के शिलान्यास अवसर पर इकोनॉमिक्स व कॉमर्स के प्रवक्ताओं की पोस्टें क्रिएट कर नगरोटा सूरियां कॉलेज में कला के साथ उसी साल कॉमर्स संकाय का मार्ग भी प्रशस्त कर दिया था। दिसंबर 2016 के शीत प्रवास के दौरान नगरोटा सूरियां कॉलेज में घोषित साइंस कक्षाओं को बिना बिल्डिंग व लेबोरेटरी के लोकल सरकारी स्कूल परिसर में चलाने की अड़चन पैदा हुई और सचिवालय से मनाही की चिट्ठी आ गई, तब भी राजा वीरभद्र सिंह के मुख्य सलाहकार टी जी नेगी ने इस आदमी की मदद कर राजा के वादे को पूरा किया था । खुन्नस की घटिया राजनीति करने वाले एक दो लोकल लोगों की झूठी कंप्लेंट पर जब इस अदने से आदमी का बिना कोई कारण, नगरोटा सूरियां कॉलेज से चंबा के चुबाडी में तबादला कर दिया गया था, तो जिला परिषद सदस्या राजा साहब से अनुनय करने पर वह तबादला कैंसिल हुआ । (तब नीरज भारती ने भी मदद की थी ) आज कांग्रेस की मन स्थिति क्या है,उसका चिंतन क्या है , नगरोटा सूरियां बेल्ट का कांग्रेस कार्यकर्ता चिल्ला रहा है ,जनता कराह रही है , स्वार्थ की राजनीति ने हालात ऐसे बना दिए गए कि नेतृत्व सहित कांग्रेस कार्यकर्ताओं को गालियां मिल रही हैं। प्रदेश का शीर्ष नेतृत्व भी अन्याय और भेदभाव की कुल्हाड़ी से नगरोटा सूरियां की हौंध का वध करने पर तुला हुआ है। कार्यकर्ताओं के कंधे पर सता की पालकी में सवार आज के राजा अपने ही कहारों के कंधों को कमजोर करने में लगे हुए हैं। हद तो तब हुई जब माननीय हाई कोर्ट के आदेश के बाद नगरोटा सूरियां की फिजाओं में जिस तरह से नेतृत्व की खिली उड़ाई गई, उनके व्यक्तित्व के विरुद्ध अनाप-शनाप बोला गया, कांग्रेस कार्यकर्ताओं का अपमान किया गया ,भांति भांति की फब्तियां कसी गईं, यह सिर्फ प्रदेश के शीर्ष नेतृत्व की बजह से हुआ। इन लोगों ने कांग्रेस के लिए पसीना बहाने वाले कार्यकर्ताओं की एक न सुनी, उनकी मेहनत व महत्व को न समझा। सत्ता में रहते हुए इन्हें सता से वंचित कर दिया, जैसे विपक्ष के कार्यकर्ता हों। हमारे नेता क्यों भूल गए कि राजनीति में अवसर बार-बार आते हैं। भले यह आंदोलन भाजपा के एक गुट का हो पर इसमें सारे नगरोटा सूरियां बेल्ट की समस्त जन भावनाओं की बेचैनी शामिल है, आखिर नगरोटा सूरियां की शान लूटी है। नगरोटा सूरियां के लोगों में फैली इस बेचैनी का असर अवश्य दूसरों को भी बेचैन करेगा। हलकों की सीमाएं वश्य हों, पर बयार के लिए कोई सीमा नहीं होती ।दूसरे ,यह भी अत्यंत गोपनीय व अबूझ रहा कि हमारे नेतृत्व ने हमारी एक बात नहीं सुनी,और नगरोटा सूरियां कांग्रेस में कुछ चाटुकारों को छोड़कर वाकी को उनके हाल पर छोड़ दिया गालियां सुनने के लिए। क्या सरकार में हमारा नेतृत्व इतना ही बेवस, असहाय व कमजोर था, जो प्रदेश के नेतृत्व को कन्वीस नहीं कर पाए। या नगरोटा सूरियां व उसके आसपास के भूगोल को खंड-खंड करने की इन सब की आपसी मिली भगत थी। ज्वाली में ब्लॉक खुलना जायज है, एक पूर्व विधायक खुलवा सकता है, तो एक वरिष्ठ मंत्री में क्या ऐसी काबिलियत नहीं है। वे वर्ष 2022 की उस अधिसूचना को पुनर अधिसूचित क्यों नहीं करवा पाए जिसके अंतर्गत ज्वाली में ब्लॉक खोला गया था ,अगर ऐसा होता तो नगरोटा सूरियां में विपक्ष को राजनीति करने का अवसर न मिलता और कांग्रेस की यहां स्थिति बदतर न हो पाती। अपनी ही जीत की पट्टी से नेतृत्व ने ऐसा क्यों किया? यही विषय शोध का है। ऐसे में आज स्वर्गीय राजा वीरभद्र सिंह बहुत याद आए, काश! आज बे होते तो शायद आज इस कांग्रेसी चिंतन की यह दुर्गत न होती । नगरोटा सूरियां बेल्ट की कांग्रेस की यह फजीयत न होती। यहां के कांग्रेस कार्यकर्ता लाजवाब न होते। खैर ,अपने बेवाकी और स्पष्ट वादी सोच का मालिक होने के नाते और क्या बोलूं ,नगरोटा सूरियां, हमने तो महलों की तमन्ना की थी ,मगर हमें खंडहरों के सिवा कुछ न मिला और यह सितम भी अपनों से मिला। अंततः अपनी ही सत्ता में नगरोटा सूरियां के अमूमन सभी कांग्रेसियों की आवाज नकार खाने में तूती की आवाज साबित हुई जिसमें फिर से खनक आने में बहुत वक्त लगेगा। इसके लिए हमारा नेतृत्व जिम्मेदार होगा।

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